पिछले महीनों ‘विजेता दहिया’ फ़िल्म निर्देशक दिल्ली में शूटिंग कर रहे थे अपनी आगामी वेब सीरीज ‘ओपरा-पराई’ की। वेलेंटाइन के दिन सीरीज का क्लाइमेक्स शूट हो रहा था और हम आधी रात को उनके साथ बैठकर बातचीत कर रहे थे। इंटरव्यू की शक्ल में यह बातचीत का पहला भाग आपके सामने आज लेकर आया हूँ। देर हुई स्वयं की व्यस्तता के चलते। लेकिन बातचीत उम्दा और य्ये लम्बी चली की पहली बार किसी इंटरव्यू को दो भाग में तथा हूबहू आपके सामने पेश कर रहा है ‘बॉलीवुड लोचा’ बॉलीवुड लोचा के फेसबुक पेज को लाइक करें, कमेंट करें और शेयर करते रहें अच्छी-अच्छी पोस्ट को हमारी। साथ ही आप भी कुछ सिनेमा से जुड़ा लेखकीय सहयोग करना चाहें तो हमसे संपर्क करें पेज के माध्यम से।
सवाल – बचपन के बारे में बताएं?
जवाब – मेरी शुरुआती शिक्षा होली चाइल्ड स्कूल से हुई जहां मैं दसवीं तक पढ़ा। और 11वीं 12वीं में डीपीएस स्कूल आर० के० पुरम से की। उसके बाद दिल्ली स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग से बीटेक किया प्रोडक्शन एवं इंडस्ट्रियल इंजीनियरिंग में अलग-अलग जॉब करता रहा।
सवाल – जॉब्स के बाद सीधा डायरेक्शन की दुनियां में, सोचा हुआ था पहले से?
जवाब – जी बचपन से तो यही था दिमाग में की फिल्में और एक्टिंग करनी है। बचपन से तो यही सब था दिमाग मे और पसंद भी था। लेकिन मिडिल क्लास फैमिली के साथ-साथ फिर हम गांव में भी रहते थे। तो इस क्षेत्र को ज्यादा रियलिस्टिक नहीं माना जाता था। उन्हें गंभीरता से नहीं लिया जाता। ख्वाब और महत्वकांक्षाओं के बीच यह बस एक ख्वाब के जैसा ही था। फिर कुछ ऐसा हुआ कि सोचा चलो पहले पढ़ लिया जाए अच्छे से, फिर जॉब भी की एक उसके बाद दूसरी जॉब की। धीरे-धीरे जॉब्स बदलते हुए एक ऐसा वक्त भी आया कि सोचा चलो अब जरूरत नहीं है अपना कमाने खाने का सिस्टम है तो चलो अब इस काम को भी किया जाए। तो इस तरह जॉब के साथ-साथ ही शुरुआत हो गई थी। बाद में मन बना हो ऐसा कुछ नहीं है। बल्कि शुरुआत से ही मन था।
सवाल – डायरेक्टिंग का कोई कोर्स किया?
जवाब- नहीं ऐसा कोई कोर्स तो नहीं किया है। पर हां कुछ वीकेंड वर्कशॉप 8,9 क्लासेज की थी। तो वहां पर एकदम बेसिक सी बातें बताई गई थी। फिल्म कैमरा ऑडियो रिकॉर्डिंग ऑडियो रिकॉर्डिंग बेसिक वहां से मालूम हुआ उन्होंने समझाया बाकी तो ज्यादातर फिल्में देखकर ही सीखा है उनके बारे में पढ़कर सीखा है।
सवाल – आपकी पसंदीदा फ़िल्म, एक्टर, डायरेक्टर?
जवाब – हां वैसे तो कई सारे हैं। जैसे सत्यजीत रहे हैं। मुझे उनकी फिल्में बहुत पसंद हैं। और उनकी मैंने बहुत सारी फिल्में देखी भी हैं। मसलन “पाथेर पांचाली” वन ऑफ माय फेवरेट फिल्म और फिर उनकी ही एक फिल्म है “जलसा घर” वह भी बड़ी यूनिक फिल्म है। वह भी बहुत अच्छी लगती है। फिर जो वर्ल्ड सिनेमा के डायरेक्टर हैं “माज़िद वाज़िद” उनका काम काफी अच्छा लगता है। फिर ईरान से “सौरभ शाहिद शैलेश” उनको मैं बहुत ज्यादा मानता हूं और उनसे सिनेमा की एक समझ आई है। उनकी फिल्में देख-देख कर के कि सिनेमा कैसे एक हायर रियलिटी हो सकता है बजाय रियलिटी को एमिटेड करने के फिर “बोन ज्युन हो” हैं जिन्होंने “पैरासाइट” बनाई “मदर” बनाई “मेमोरीज ऑफ़ मर्डर” बनाई “स्नो पिअर्सर” बनाई तो उनकी भी काफी सारी फिल्में देखी है तो वैसे वैसे काफी सारे डारेक्टर है। हाँ एक माइकल मैन हेकी है की फिल्में भी आप देखो तो आपके दिमाग मे 100 वॉट का करेंट देती है। तो हाँ इस टाइप के अलग-अलग डारेक्टर को देखा है।
सवाल – आपकी पहली फिल्म ‘दरारें’ काफी रियलिस्टिक कहानी लगती है समाज से जुड़ी हुई। अब आपकी वेब सीरीज भी आ रही है, तो आपको किस तरीके का सिनेमा बनाना ज्यादा पसंद है?
जवाब – हम जो हैं केवल सिनेमा को देखते हैं कि रियलिस्टिक है या फिर हीरो, विलेन, हीरोइन वाली जो मसाला फिल्म टाइप जो होती हैं। लेकिन जरूरी नहीं कि फिल्म रियलिस्टिक हो कई बार फ़िल्म सरीयल भी होती है तो, कई बार सरीयल होते हुए भी वह कुछ बहुत कमाल की बात कहती है। जैसे मुझे एक फिल्म याद आ रही है ‘थ्री आयरन’ के नाम से एक फिल्म है और उसकी जो कहानी है देखा जाए तो बहुत रियल कहानी तो नहीं है। फिर भी एक आदमी है और वह जब वह किसी भी घर में घुसता है, जहां पर उसे पता चलता है कि यह लोग वेकेशन पर गए हुए हैं और वह वहां से कुछ भी चोरी नहीं करता है और वहां पर बस कुछ टाइम गुजारता है और वहां पर जो कुछ खराब रखा है, जैसे वाशिंग मशीन या वेइंग मशीन कुछ भी। बदले वह सब ठीक कर देता है। फिर एक घर में उसे एक हाउसवाइफ मिलती है जो बाई चांस अपने पति और उससे दु:खी है इस इस तरीके से पूरी फिल्म कहानी चलती है और हीरो हीरोइन के कोई डायलॉग भी नहीं है पूरी फिल्म में, जबकि ऐसा नहीं है कि वह गूंगे हैं ऐसे ही डायलॉग नहीं है। बहुत अलग से तरीके से बनाई है तो एक तरीके से हम कहें तो ये रियलिस्टिक नहीं है लेकिन उसका जो भाव है यह जो पिक्चर जो कहने की कोशिश कर रही है वह अपने आप में हमारे समाज का एक बहुत ही कमाल की , एक बहुत ही पावरफुल चीज को दर्शाती है। तो रियल ना हो तो सरियल भी हो सकता है। ठीक मैजिक रियलिज्म जैसे बहुत कमाल का गाना आ रहा है। जैसे “विनोद कुमार शुक्ल” का नॉवेल है “दीवार में खिड़की रहती थी।” वह पूरी ही किताब इस तरीके से है की पढ़ते हुए आपके चेहरे पर हर समय हंसी बरकरार रहती है। तो मेरा मानना है कि ठीक रियल हो या मैजिक रियलिज्म हो या सरियल हो लेकिन फॉर्मूला सिनेमा आप जिसे कहते हैं उस तरह का न हो। जिसमें कुछ भी नहीं है और लोग एक तरह से कैंडी फ्लॉस टाइप का सिनेमा परोस रहे हैं। जिसमें थोड़ी सी मार-धाड़ हो गई, थोड़ा रोमांस हो गया, थोड़ा एक्शन हो गया यह तो ठीक है उनके लिए पर मैं किसी को जज नहीं करता इससे। कोई बनाता है बनाए। किसी को अच्छी लगती है अच्छी बात है पर मेरे लिए ये सब बातें नहीं है काम की और ना ही मेरे पास वो मेंटल स्पेस है कि मैं अपनी जिंदगी के कुछ महीने ऐसा कुछ बनाने में दूँ। मुझे लगता है कि मैं कुछ ऐसा बनाऊं हमेशा जिसे मैं 5 साल बाद भी देखूं तो लगे अरे वाह! मैंने कुछ बनाया।
अगर रियलिस्टिक ना ही तो भी ठीक है। वैसे एक और फिल्म आई थी “रघु रोमियो” रजत कपूर की पहली फिल्म थी। जिसे नेशनल अवार्ड भी मिला था। वह भी ऐसी ही एक बड़ी अलग सी फिल्म है। एक आदमी जो टीवी सीरियल देखता है सास बहू का टीवी सीरियल है और एक बहू का करैक्टर इतना पसंद आ जाता है कि उसकी रियलिटी है उसमें। वह उसमें ही अपने आपको जीता हुआ महसूस करने लगता है। बहुत ही प्यारी सी, बहुत अलग सी कॉमेडी फिल्म थी। ऐसा भी हो सकता है लेकिन हां जो यह ‘रोहित शेट्टी’ या ‘सलमान खान’ या इन सब की जो यह फिल्में होती हैं कि कुछ भी चल रहा है मिक्स वेज टाइप। थोड़ा ये मसाला बुरका दो थोड़ा वो और लो जी तैयार है। ये सब मुझे पसंद नहीं है।
सवाल- अभी आप जो वेवसीरिज बना रहे हो, क्या उसकी कहानी है? क्या उसका टाइटल है? कब तक उस के फ्लोर पर आने का है?
जवाब – ये अप्रैल-मई के आस-पास उम्मीद है शायद ये आएगी, रिलीज होगी और इसका टाइटल “ओपरा” है। जैसे गाँवों में ओपरा पड़ जाता है महिलाओं में खास करके देखा जाता है ये। तो ये उसी मुद्दे को लेकर है। सम्भवतः दर्शकों को ये लगेगा कि हॉरर है लेकिन मैं बता दूं कि ये हॉरर नही है। एक बड़ा ड्रामा है जिसे आप थ्रिलर की श्रेणी में रख सकते हो। कहानी एक गाँव की औरत है और उसके अंदर ओपरा आ जाता है जैसे कहते हैं गांवों में कि उसमें किसी की आत्मा आ गई है। और फिर वो कुछ-कुछ ऐसी चीजें करती है जो नॉर्मली औरतें नहीं करती लड़के करते हैं। नॉर्मली औरतें नही करती कि वो साईकिल चला रही है ट्यूबवेल पर नहा रही है या कुछ-कुछ ऐसा कर रही है। फिर पता चलता है कि इसमें किसी लड़के की आत्मा है या नहीं है। ये सब तो सीरीज देखने के बाद मालूम होगा।
सवाल- कितने सीज़न बन रहे हैं सीरीज के या एक ही सीजन में खत्म हो जायेगी कहानी?
जवाब – ये काफी कुछ प्रोड्यूसर पर भी निर्भर करता है। तो हो सकता है वो इसे दो सीजन में रिलीज करें। बाकि जो कहानी है वैसे उसमे वो हो सकता है नॉर्मली जो सीजन से मैं समझता हूँ नॉर्मली कहानी में एक टाइम लैप्स होते है कि चलो ये सब आपने कहानी देखी अब इसके चार साल बाद की कहानी। इन्ही सब कैरक्टर को लेकर जिसमें ये सब समय के साथ बदलता रहता है। इसमें ऐसा नही है ओर एक बहुत ही बंधी हुई , सधी हुई सी कहानी है। तो मेरी नजर में तो ये एक सिंगल सीजन ही है लेकिन अब जैसे हरियाणवी वेबसीरिज जो रिलीज हो रही हैं स्टेज एप्प पर लगातार उसमे एक ऐसा पैटर्न है कि नॉर्मली चार एपिसोड का या पांच एपिसोड का एक सीजन होता है उस लिहाज से देखे तो दो सीजन रिलीज हो जाएं तो देखते हैं क्या होगा।