Actor Badrul Islam Interview बदरुल इस्लाम का इंटरव्यू
Actor Badrul Islam Interview बदरुल इस्लाम का इंटरव्यू: बदरुल इस्लाम एक पिछले दो दशकों से भारतीय फिल्म उद्योग में अपने अभिनय से खासा चर्चित नाम बने हुए हैं। दंगल, तेरे बिन लादेन से लेकर हाल ही में 68 वें नेशनल अवॉर्ड से नवाजी गई फिल्म ‘ तुलसीदास जूनियर’ में भी नजर आये हैं। शारीरिक लम्बाई में ये भले ही छोटे कद के हों लेकिन थियेटर और फिल्मों में इनके अभिनय का कद बड़ा है। पढ़िये उनके साथ हुई बातचीत के कुछ अंश।
घर में तो ऐसा कोई था नहीं जो सिनेमा से जुड़ा हुआ हो। मैं एक ऐसे परिवार से हूँ जहाँ सब लोग इस्लामिक हैं। नमाज, रोज़ा आदि में विश्वास रखने वाले हैं। लेकिन निश्चित रूप से तो नहीं कह सकता किन्तु एक छोटी सी घटना मुझे जरुर याद है शायद वहाँ से इस बारे में यह ख्याल तेजी से आया। मैं चौथी-पाँचवीं कक्षा में रहा होऊँगा। उस समय में वी सी आर हुआ करते थे और हमारे स्कूल में एक-एक रुपया हम लोगों से (बच्चों से) लिया गया था वहाँ सचिन दा की फ़िल्म ‘घर द्वार’ दिखाई जानी थी। और हमारे घर की बात करूँ तो टेलीविजन आदि आज भी नहीं है मेरे यहाँ गाँव में। लोग पसंद नहीं करते हैं उसे यह भी कारण है और जब यह फिल्म दिखाई गई तो इस फ़िल्म ने मुझ पर गहरा असर छोड़ा। मुझे लगा यह जो कुछ हो रहा है बड़ी अच्छी चीज है और बड़ी काम की चीज है। इसका सुरूर भी कई दिनों तक मेरे अंदर रहा। एक बार एक और फिल्म देखी गई, हमारे पड़ोस में वी सी आर आया था और हम अपनी छत से देख रहे थे। वहाँ जाकर देखने की इजाजत भी हमारे अब्बा ने नहीं दी। वहाँ से जो थोड़ा बहुत दिखाई दिया उससे पता चला कि फिल्म ‘शोले’ है। तो शोले फिल्म जब देखी तो उसमें जो घोड़े आदि का सीन था, डाकुओं का घोड़ों पर आना। उस सब ने भी मुझे बहुत प्रभावित किया। अमिताभ बच्चन, धर्मेन्द्र साहब की एक्टिंग भी। उस फिल्म को देखने के बाद जो हमारे गाँव में तलाब था जिसका नाम था ‘शीतला’ वहाँ तलाब पर मैं मेरे साथी दोस्त के साथ वहाँ गया। वहीं मेरा एक दोस्त कुम्हार, प्रजापति गधे चरा रहा था, उससे मैंने कहा गधे, घोड़े कुछ दे दो-तीन हमें भी थोड़ी देर। उसके बाद मैं बैठा और मेरे दोस्त को बिठाया उस पर और हम डाकू बन गए, ऊपर से सर्दी के दिन थे। मुँह पर टोपा-मफ़लर भी बाँध लिया। तो यहाँ से शुरुआत आप मान सकते हैं।
उसके बाद अब्बा ने जब साइकिल लाकर दी तो उस पर भी वही फिर उसके बाद कुछ फ़िल्में और देखीं। उसी समय गाना आया था ‘मौत आनी है आएगी इक दिन’ तो उस गाने को गाते हुए तेजी से साइकिल चलाना हो या उसके बाद स्कूल में 15 अगस्त , 26 जनवरी के कार्यक्रम हों या उन सभी में मेरा बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना हो ये सब मेरी फ़िल्मी शुरुआत का कारण रहे। छोटे-छोटे ड्रामें करना, गानों पर एक्टिंग करना इनमें भी सबसे पहले मैंने जिस गाने पर मैंने एक्टिंग की वह गाना था ‘औलाद वालों फूलो-फलो’। यह मेरी पहली परफोर्मेंस रही उसमें भी हुआ यूँ कि पजामा थोड़ा बड़ा और ढीला दे दिया तो जाते समय उस पज़ामें का नाड़ा खुल गया और वो भी गिर गया। लेकिन मैं हारा नहीं जैसे अमूमन बच्चे घबरा जाते हैं तो ऐसा कुछ मेरे साथ नहीं हुआ।
और पढ़े: 10 हिट फिल्मों के सबसे खराब डायलॉग, जिसे सुनकर बाल नोचने का मन करता है
दिल्ली में जब जामिया मिलिया इस्लामिया आया तो वहाँ स्कूल के कल्चर इवेंट में मैं प्रोग्राम करता रहता था उसी दौरान मैं एन० एस० एस० से भी जुड़ा। जिसमें नुक्कड़ नाटक भी होते हैं उनमें भी बढ़-चढ़ हिस्सा लेता रहा। उसी प्रक्रिया में हम लोग हरियाणा के किसी गाँव में नाटक करने गए तो मुझे वहाँ बेस्ट एक्टर का तमगा मिला वहाँ से फिर मैं एकदम निकल पड़ा। श्री राम सेंटर ऑफ़ परफोर्मिंग आर्ट्स में भी दाखिला लेने की दिलचस्प घटना रही यह सब करते-करते एन एस डी में भी काम किया।
पहली फिल्म पहला हवाई जहाज का सफर पहला सीरियल
एन एस डी की एक टी आई कम्पनी है जिसका पूरा नाम है थियेटर इन एज्युकेशन हिंदी में इसका नाम है संस्कार रंग टोली जो बच्चों के लिए काम करती है , तो दो साल उससे जुड़ा रहा एन एस डी करने के बाद। पहले ही साल फ़िल्म ‘रंग दे बसंती’ के ऑडिशन के लिए राकेश ओमप्रकाश मेहरा के साथ कुछ लोग आए। और जब स्लेक्ट किया गया तो पहली बार हवाई जहाज का सफ़र करने को मिला। फ़िल्म की अन्य कास्ट के पता चला कि आमिर खान भी हैं। सुनकर मैं बड़ा हैरान हुआ । उसके बाद अप-डाउन करता रहा शूटिंग पूरी की। शूटिंग के बीच ही मैंने एक और ऑडिशन देकर गया। यह ऑडिशन ज़ी टीवी के धारावाहिक के लिए था। सीरियल का नाम था “ममता” यहाँ से सीरियल का सिलसिला भी शुरू हो गया।
उसके बाद राज श्री से जुड़ा। ‘वो रहने वाली महलों की’ , ‘यहाँ मैं घर घर खेली’ उनके कई शो किए। इसके बाद ‘विक्रम वेताल’ और इस तरह कई प्रोड्क्शन से जुड़ा सीरियल करता रहा। दस साल के फ़िल्मी सफ़र में अभी पेनिन्सुला पिक्चर्स का ‘अलादीन-नाम तो सुना होगा’ में अलादीन के चाचा का किरदार भी किया। ‘फिरोज अब्बास खान’ राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार विजेता की फ़िल्म ‘गाँधी माय फादर’ वाले उनका एक शो है ‘मैं कुछ भी कर सकती हूँ’। तो दरअसल उसमें हिन्दुस्तान के अलावा कई बाहर के बड़े लोग बिल गेट्स जैसे भी जुड़े हुए हैं। उनके साथ भी काम करने का अवसर मिला।यह शो कई अन्य भाषाओं में सबटाईटल के साथ विभिन्न मुल्कों में प्रसारित भी होता है। इसके बाद एक और 68 वें नेशनल अवार्ड फिल्म ‘तुलसीदास जूनियर’ में भी काम किया। अब ‘अश्वनी चौधरी’ की फिल्म है ‘सैटर’ इसमें पेपर लीक करने वाले लोगों की कहानी कही गई है। तो कुल निचोड़ यही है कि मैं अपने अब तक के सफ़र से खुश और इत्मीनान हूँ।
अमिताभ बच्चन और चार्ली चैपलिन काफी प्रभावित किया
बात करूँ बड़े कलाकार की तो सबसे बड़े कलाकार मेरे लिए चार्ली चैपलिन साहब हैं और अगर हिंदुस्तान की बात करें तो अमिताभ बच्चन। इन्होंने बड़ा प्रभावित किया। इसका कारण है कि जब एन एस डी में मैं सीख रहा था तो मुझे एक कॉमेडियन के तौर पर ही मुझे वहाँ देखा गया। लेकिन कॉमेडी करने का मौका मुझे बहुत कम मिला। आम जीवन में जरुर हास्य रखता हूँ लेकिन अमिताभ बच्चन की जब फ़िल्में देखी तो मेरे अंदर जो रस थे वो सभी मुझे वहाँ दिखाई दिए। वो संजीदा एक्टिंग हो या कॉमेडी सब बड़ी प्यारी करते हैं। उनसे मुझे ये सब करने की इबरत मिली और शुक्र है ऊपर वाले का की कई बार मुझे उनके साथ काम करने का मौका मिला। जैसे ‘के० बी० सी० का एड हो या ‘बुढा होगा तेरा बाप’ का प्रोमो या फोर्च्यून गाड़ी का एड तो कई मौके मिले। दूसरी तरफ़ आमिर भाई के साथ में ‘दंगल’ फ़िल्म में भी काम किया।
जूनियर आर्टिस्ट अलग होते हैं। वे लोग जो सिर्फ़ क्राउड के लिए हों। ये लोग संवाद वगैरह नहीं बोलते हैं पासिंग आदि के लिए होते हैं। उसके बाद आते हैं कैरेक्टर आर्टिस्ट। वैसे जूनियर आर्टिस्ट की परिभाषा गलत गढ़ी गई हैं और कैरेक्टर आर्टिस्ट की टर्म हाल-फिलहाल में ही बनाई गई है। वैसे देखा जाए तो आर्टिस्ट तो आर्टिस्ट ही है। उसमें कैरेक्टर, हीरो आदि ये सब बात नहीं होती। पहले ऐसा नहीं होता था ना , महमूद भी हीरो हुआ करते थे। जबकि उनके नाम पर यहाँ हास्य कलाकार महमूद चौक भी बना है। तो मुझे ये सब ठीक नहीं लगता। कलाकार तो कलाकार ही है। लिहाजा मैं एक कलाकार हूँ। एक बात और कि सीरियल में मैंने लीड किया है इसके अलावा भी मुझे मालूम है कि मुझे किस तरह के रोल मिलेंगे। जैसे विक्रम-वेताल में वेताल का रोल किया था जो कलर्स पर आया था। सीरियल में भी मुझे मेरी कद काठी के अनुसार ही रोल मिल रहे हैं। अलादीन में अलादीन का चाचा बनकर कॉमेडी भी कर रहा हूँ और विलेन भी कर रहा हूँ। ‘इच्छा प्यारी नागिन’ में पहलवान का रोल किया इससे पहले। तो ये अलग-अलग कैटेगरी में जो आप रख रहे हैं चाहें तो रख लीजिए उस हिसाब से मैं कैरेक्टर आर्टिस्ट हूँ। इसके अलावा चाहत तो है लीड करने की और वो चाहत पूरी भी होगी।
सलमान भाई बहुत सज्जन इंसान है
सलमान भाई वाकई भाई हैं और सबके भाई हैं और बहुत सज्जन इंसान हैं। सबसे बड़ी बात जो घर के संस्कार होते वो संस्कार इंसान के साथ चलते हैं। दूसरे राइटर जो होते हैं बहुत ही संजीदा होते हैं और भावनाओं से भरे हुए होते हैं। उनके पिताजी एक राइटर हैं, लेखक हैं और बड़े अच्छे संस्कार उन्होंने अपने बच्चों को दिए हैं। आप मानेंगे नहीं लेकिन सेट पर यह समझ लीजिए कि जब उनके घर से खाना आता है उनकी मम्मी जब खाना भेजती हैं तो सबको बुलाते हैं और कहते हैं आइये खाना खाइए हमारे साथ। सबको एक जैसा खाना, बेहतरीन खाना, सबको पूछना कोई समस्या है तो बताइए। हर चीज में मदद करना, सबसे दोस्ती कर लेना। यही नहीं उनके सभी भाई अरबाज भाई, सोहेल भाई सभी अच्छे लोग हैं, मदद करते हैं इसके अलावा वक्त पर मदद भी करते हैं जैसे आपने दो दिन अगर काम किया तो तीसरे दिन आपको पैसे मिल जाएंगे उसके लिए भटकना नहीं पड़ता।
सब जगह अलग-अलग दस्तूर है। कई प्रोड्क्शन हाउस है। सब जगह अलग-अलग व्यवहार होता है। कहीं कैसा तो कहीं कैसा व्यवहार होता है। लेकिन ज्यादातर अच्छे ही होते हैं कहीं-कहीं हो गया तो हो गया अपवाद स्वरूप। लेकिन मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ कभी। अमिताभ बच्चन हो या कोई और सबके साथ समान व्यवहार ही होता है इस मामले में। लेकिन सीनियर हैं तो थोड़ी तो तवज्जो देनी ही पड़ेगी फिर चाहे वह डायरेक्टर हों या एक्टर हों , को-एक्टर हों या प्रोड्यूसर। और यह सब तो आप कहीं भी देख लीजिए इसी लाइन में क्यों हर जगह आपको इसका ख्याल तो रखना पड़ता है। जैसे किसी ऑफिस में आपके बॉस हैं तो उनका मान तो रखना ही होगा तो यह तो हर जगह है।
फिल्मों के सफल होने के लिए स्क्रिप्ट बहुत अच्छी होनी चाहिए। अगर स्क्रिप्ट होगी तो काम बन जाएगा। अब जैसे ‘अंधाधुन’ , ‘बधाई हो’ , ‘राजी’ देख लें इन सबकी स्क्रिप्ट बहुत अच्छी है। आजकल ऑडियन्स भी चाहती है कि उन्हें अच्छी स्क्रिप्ट मिले। उनके बीच की स्क्रिप्ट उन्हें चाहिए जिससे उन्हें लगे कि उनके साथ यह सब कुछ हो रहा है। जहाँ से रियलिस्टिक थियेटर शुरू हुआ था वो यहीं से शुरू हुआ था। जो आदमी है उसे वह अपनी घटना लगे, उसे लगना चाहिए कि हाँ यार यह तो मैं हूँ। तो लोग वापस वहीं पर आ रहे हैं और लोगों को जहाँ अपना सा लगेगा तो वहाँ लोग जाएंगे।
सबसे पहली बात तो ये कि मैं किसी अवार्ड फंक्शन में गया नहीं। नॉमिनेट जरुर हुआ हूँ एक-दो बार लेकिन किसी वजह से मैं बिजी हूँ या ऐसा कुछ रहा तो मैं गया नहीं और दूसरा मुझे मिला भी नहीं तो अंदर क्या कहानी है वो तो मुझे पता नहीं। सुनने में तो मैं भी कई बार सुनता हूँ कि ऐसा हो जाता है। कि किसी का नाम है तो वो किसी का नाम चेंज कर दिया। इतना मुझे पता नहीं लेकिन आप कह रहे हैं तो होता होगा। लेकिन कभी किसी अवार्ड फंक्शन में जाऊँगा और ऐसा कुछ हुआ तो शायद इसका बेहतर जवाब दे पाउँगा
लाल बहादुर शास्त्री जी बायोपिक करना चाहता हूं
अगर शास्त्री जी पर कभी बायोपिक बनती तो मैं लाल बहादुर शास्त्री जी का रोल करना चाहता हूँ। उनकी जीवनी और उनके बारे में जो पढ़ा है वह मुझे बहुत प्रभावित करता है। साथ ही वे कद-काठी के भी छोटे थे तो शायद मैं उसमें फिट हो जाऊँगा, तो वो करना चाहूँगा। या कभी बनाने का मौका मिला तो उन्हीं पर बनाऊँगा। या फिर किसी ने बनाई तो उसके ऑडिशन के लिए जरूर जाऊँगा। वैसे अभी कबीर खान की हाल ही खत्म की है हमने जो उन्होंने नेता जी पर बनाई है ‘द फॉरगेटन आर्मी’ तो उसमें भी काम किया है। इसके अलावा ‘नेपोलियन बोनापार्ट’ पर अगर फिल्म बनती है तो मैं जरूर काम करना चाहूंगा उसमें बतौर लीड एक्टर।
फिल्म का क्या है कि हीरो को ही ज्यादा मिलता है। लेकिन हमारे सीरियल में वह नहीं है। सीरियल में इसका उल्टा है कि उसमें लेडिज को ज्यादा मिलेगा। बाकि आपकी फैन फॉलोइंग आदि इन सब पर भी निर्भर करता है टीवी में। फिल्म में पहले हीरो लोग लेते हैं उसके बाद बाकि के लोग कैरेक्टर आर्टिस्ट आदि को। फिल्म में भी आजकल बहुत सारी लड़कियाँ खुद से स्टंट कर रही हैं। दूसरी बात अभी यह जागरूकता आई ही है मार्शल आर्ट आदि की। दरअसल ये हमारे आदर्श बन जाते हैं। जैसे कपड़े सलमान या कैटरीना पहनेंगी वैसे ही हमारी लड़कियाँ पहनेंगीं, गेटअप लेंगी। तो यह तो अच्छी बात है कि अगर वो स्टंट कर रही है अच्छा कर रही हैं तो बाकि लड़कियाँ इससे प्रभावित हो जाए कि हमें भी यह करना चाहिए। यह समाज और स्वयं की रक्षा के लिए भी अच्छी बात है।
किसी भी ऑडिशन के लिए मैं घर से ही तैयार होकर जाता हूँ। कुछ-कुछ चीजें मैंने घर में रखी हुई है अगर कोई भी रोल आता है तो उसके लिए जरुरी जानकारी ले लेता हूँ और उसी हिसाब से तैयार होकर जाने की कोशिश करता हूँ। कई बार मेकअप दादा को भी साथ ले जाता हूँ।
अब से पन्द्रह साल पहले तो कह सकते थे कि जूनियर, सीनियर आर्टिस्ट में अंतर है मगर अब ऐसी कोई बात नहीं है। देखिए ना आज कोई भी अवार्ड शो होता है तो सब एक साथ बैठे होते हैं। अमिताभ बच्चन के० बी० सी भी कर रहे हैं , शाहरुख खान , सलमान खान, आमिर खान आदि सभी अब टेलीविजन करते हैं। अभी तो मुझे कोई ख़ास फर्क दिखाई नहीं देता है। पन्द्रह साल पहले जरूर कह सकते हैं ऐसा था जहाँ फिल्म का अलग और टीवी का अलग अवार्ड फंक्शन हो रहा है। अब तो सीरिज आ गई हैं तो उन्होंने सबको एक साथ लाकर खड़ा कर दिया है। अलादीन भी नॉमिनेट हो रहा है तो सैफ अली खान भी या नवाज भाई नॉमिनेट हो रहे हैं तो हमारे टीवी के विलेन जाफ़र भाई भी नॉमिनेट हो रहे हैं तो दोनों एक साथ आ रहे हैं अब। इस आधार पर कह सकता हूँ कि अब टेलीविजन या फिल्म में कोई अंतर नहीं रह गया है।
मैं सही बताऊं ना तो ये ‘लव जेहाद’ शब्द ही मेरे समझ में नहीं आता है कि ऐसे शब्द आ कहाँ से गए? ये शब्द क्या हैं? मैंने तो कभी सुने भी नहीं थे और ऐसे शब्द होने भी नहीं चाहिए थे। आप बताएँ क्या है लव जेहाद? आप बताएँ हिन्दुस्तान जैसा देश कहीं दुनिया में है क्या? इतने सारे मौसम … इतने सारे लोग… सब एक साथ रह रहते हैं तो ये कौन करता है? कहाँ से आ रहा है ये? कर रहे हैं ना … कब से चलता आ रहा है … हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई आपस में शादी नहीं करते क्या? सब करते हैं … एक बात बताएँ मुझे हिन्दुस्तान में जब मुगल आए थे, तुर्क लोग आए थे, मोहम्मद गौरी वगैरह … तो क्या अपने साथ अपने परिवार को साथ लेकर आए थे क्या? ये तो लूटने के लिए आए थे और फिर उन्हें अच्छा लगा और यहीं बस गए … हिन्दुस्तान को बाद में दिया भी बहुत कुछ है … मुझे एक वाक्या जरूर याद है अकबर ने जोधा जी से शादी की थी और ऐसे कई सारे और वाकये भी हो सकते हैं कि वो यहाँ आए और यहाँ आकर शादियाँ की , घर परिवार बसाए , आगे बढ़ाए … तो हम अलग कैसे हो गए एक-दूसरे से?
हमारा तो खून भी एक है और हो गया… बाद में हिन्दू-मुसलमान हो गए … मगर हैं तो एक हीं …
खून हमारा एक ही है …
मुझे ऐसा लगता है। मुझे दुःख होता है ये सुनकर …
मैं दुर्गा पूजा भी जाता हूँ , मंदिर भी जाता हूँ
इतनी खूबसूरती कहाँ मिलेगी आपको किसी और दूसरे मुल्क में? इतने सारे त्यौहार … इतना सब कुछ कहाँ मिलेगा? इसे खुबसूरत बनाना चाहिए … मुझे लगता है हिन्दुस्तान में सबसे ज्यादा जरूरत शिक्षा की है … आप मत करिये कुछ भी … इसलिए मत पढिए की मैं नौकरी करूँगा। आप सिर्फ इसलिए पढ़ लीजिए कि मुझे एक अच्छा इंसान बनना है। जो लोग गलत राह पर हैं उन्हें मुझे सही राह पर लाना है … सही रास्ता दिखाना है … ये सोचिए। आप मेरे घर आएँ … मेरी पत्नी कोलकाता से हैं और हिन्दू परिवार से है उस पर भी पंडित परिवार से। अब आप बता दीजिए हम दो कौम के लोग एक साथ नहीं रह रहे? आप उनमें कोई फर्क नहीं महसूस कर पाएंगे कि ये कौम अलग-अलग है। मैं दुर्गा पूजा भी जाता हूँ , मंदिर भी जाता हूँ और वहीं मेरी पत्नी कभी-कभी नमाज भी पढ़ती है। मेरे बच्चे से एक बार स्कूल में पूछ लिया किसी ने की आप हिन्दू हैं या मुसलमान? तो बच्चे ने मेरे से पूछा तो मैंने कहा आप इंसान हो … और आपको एक अच्छा इंसान बनना है। सबके एक मुँह , दो हाथ पैर हैं … अब पाँच साल का बच्चा ये सब पूछ रहा है तो हमें चाहिए कि हम ऐसी बातें ना करें अपने घरों में भी नहीं और आस-पास भी नहीं। ऐसी खबरें भी ना देखें। अच्छे संस्कार दें अपने बच्चों को और अपने आस-पास के बच्चों को।
बाकी रही बात ‘तुलसीदास जूनियर’ की तो इस फिल्म के आने से पांच-छ: साल पहले एक प्रोजेक्ट किया था। एक एड फिल्म थी जिसकी प्रोड्यूसर महिमा थीं इंदौर से उनसे बात हुई मृदुल बाबा का संदर्भ भी मिला लेकिन जब तुलसीदास जूनियर के बनने की बात हुई तो मुझे रहमत का किरदार मिला इसमें। उस समय मैं अलादीन भी शूट कर रहा था। बीच-बीच में समय निकालकर महबूब स्टूडियो जाकर अपना हिस्सा शूट किया। आशुतोष गोवारिकर से मिलना भी हुआ फिल्म के चलते। लम्बे समय तक यह फिल्म ओटीटी नेटफ्लिक्स पर पहले नंबर पर भी रही। लेकिन जब इसे नेशनल अवॉर्ड मिला तो बहुत खुशी हुई। हर किसी का सपना होता है इसे पाना। यह फिल्म की पूरी टीम का अवार्ड है। मृदुल बाबा के जीवन की खुद की कहानी है और उसे हिंदुस्तान का इतना बड़ा अवार्ड मिलना बड़ी बात है। इसमें तुलसीदास जूनियर का जिस बच्चे ने किरदार किया है मुझे लगता है उससे बेहतर भी किसी ने किया होगा इसलिए उसे अवार्ड नहीं मिल पाया। लेकिन मैं चाहता हूँ उन्हें भी भविष्य में मिले। फिल्म में भी उन्होंने उम्दा काम किया था लेकिन अभी उनके जीवन में और कई मौके आएंगे।
‘राजेश टचरिवर’ की फिल्म को भी नेशनल अवार्ड मिला है। उनके साथ भी एक फिल्म आने वाली है जिसे नेशनल अवार्ड मिलना तय है। उड़ीसा में शूट हुई यह फिल्म कई भाषाओं में रिलीज होने की सम्भावना है।। फिलहाल बीस से ज्यादा फेस्टिवल में ये भेजी जा चुकी है। ज्यादा अभी नहीं कह सकता लेकिन यह हटकर वाली फिल्म है। ऐसी हटकर वाली फिल्में मुझे पसंद आती हैं। कांस में राजेश जी की फिल्मों से ही ओपनिंग होती है अगले साल उसमें भी यह फिल्म भेजी जायेगी। इस फिल्म में मैंने विलेन का किरदार किया है। जिसमें जेडी चक्रवर्ती, तन्निष्ठा चटर्जी, आशिक हुसैन, जगन्नाथ आदि भी हैं।
जल्द ही एक और फिल्म में भी दिखाई दूंगा ‘ रतौन्धी- द हाफ ब्लाइंड’ इसका विषय भी काफी हटकर है। इस तरह की सामाजिक मुद्दे वाली या ग्रामीण परिवेश वाली फिल्में मुझे पसंद आती है। इसके अलावा लॉक डाउन के समय में कई सारी शॉर्ट फिल्में भी मैंने लिखीं हैं। इन फिल्मों की शूटिंग भी हम लोग अगले महीने शुरू करने वाले हैं। इन फिल्मों को मेरे भाई अख्तरुल इस्लाम निर्देशित करेंगे अपने खुद के कला मंडी के बैनर तले। ये सभी फिल्में फिल्म फेस्टिवल्स के लिए बनाई जायेंगीं। सामाजिक मुद्दों पर आधारित इन फिल्मों में मेरे अलावा अन्य दूसरी स्टार कास्ट भी रहेंगीं।