‘अगर आपको एक्टर बनना है तो दिमाग को खाली करके मुंबई आओ। आजकल जो लोग हीरो बनने के लिएफिल्म नगरी में आते हैं, उनके दिमाग में बहुत कुछ भरा होता है। उनके दिमाग में उस ब्लैक बोर्ड पर कुछ भी लिखना मुश्किल होता है। जो लोग खुद को जीरो मानकर यहां आते हैं और अपने किरदार में घुसकर अपनीप्रतिभा का उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हैं वही लोग सही मायनों में एक्टर कहलाते हैं।’ यह कहना है पिछले 27 वर्षों से गुजराती सिनेमा के सुप्रसिद्ध कलाकार मेहुल बुच का जिन्होंने स्टार प्लस पर प्रसारित हुए राजश्री प्रोडक्शन के फेमस सीरियल प्यार का दर्द है मीठा-मीठा प्यारा प्यारा में खासी वाहवाही बटोरी थी। हाल ही रामकपूर व सनी लियोनी की फिल्म ‘कुछ—कुछ लोचा है’ में भी मेहुल के अभिनय को दर्शकों ने काफी सराहा।
हाल ही में मेहुल बुच से खुलकर बातचीत हुई। गुजराती रंगमंच के प्रसिद्ध कलाकार और फिल्म अभिनेता परेश रावल, टीकू तल्सानिया के साथ लंबे अरसे से काम कर रहे मेहुल बुच ने बताया कि वे 27 वर्षों से गुजराती थियेटर से जुड़े हैं। पिछले दो वर्षों से अन्य प्रोजेक्टों के साथ जुड़ा होने के कारण उन्हें गुजराती थियेटर से दूर रहना पड़ा। उन्होंने बताया कि आगामी 6 माह के भीतर एक बार वो फिर से गुजराती थियेटर में काम करते दिखाई देंगे।
सिनेमा, रंगमंच और टीवी के मध्य विविधता के संदर्भ में पूछे गए एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि एक अच्छे कलाकार के लिए इन तीनों में कोई फर्क नहीं है। हां, इन तीनों की तकनीक में अन्तर अवश्य है, परन्तु जो अच्छा कलाकार होता है उसे सिनेमा, रंगमंच और टीवी पर अपना शत-प्रतिशत देना होता है।
अपने मनपसंद रोल को करने की इच्छा के संदर्भ में पूछे गए एक सवाल के जवाब में मेहुल ने बताया कि वे हमेशा खुद को एक अच्छे एक्टर के तौर पर देखते हैं। उनकी नजर में फिल्म जगत में अमिताभ बच्चन को भगवान का दर्जा दिया जाता है और यही वजह है कि उन्होंने भूतनाथ फिल्म में उनके साथ काम किया और 12 दिनों तक उन्हें अमिताभ बच्चन के साथ रहने का मौका मिला। इसकी वजह ये थी कि वे उनके साथ काम करके ये देखना चाहते थे कि आखिर वे अमिताभ क्यों हैं। अमिताभ की प्रतिभा व उनके व्यक्तित्व के चलते वे फिल्म ‘पा’ में उनके द्वारा निभाए गए रोल को करने की इच्छा रखते हैं।
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फिल्मों में काम करने के संदर्भ में पूछे गए एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि मैं फिल्मों में वही रोल करूंगा जिसमें मुझे मजा आए। मैं आखिरी सांस तक काम करूंगा और अच्छा करूंगा।
मायानगरी में एक्टर बनने की इच्छा लिए आने वाले हर शख्स के लिए उन्होंने अपना संदेश देते हुए कहा किएक्टिंग करना सबसे मुश्किल काम है। जो लोग ये समझते हैं कि मैं कुछ नहीं कर सकता इसलिए एक्टर बन जाता हूं। उनके लिए फिल्म नगरी अधिक दिन का घर नहीं है। उनके अनुसार खुद को शीशे में देखकर खुद को एक्टर समझने वाला व्यक्ति कभी एक्टर नहीं बन सकता। एक्टर बनने के लिए अभिनय के प्रति लग्न, समर्पण भावना होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि एक्टिंग बहुत महंगी और मुश्किल है। 52 सैकेण्ड की एक एड को बनाने में 9 दिन लग जाते हैं। आम लोग इस बात को नहीं जानते, शायद इसीलिए उन्हें लगता है कि एक्टर बनना बहुत आसान काम है।
प्रत्येक सप्ताह रिलीज होने वाली फिल्मों के तेज गति से आने और जाने, दर्शकों के दिमाग में उनके अधिकसमय तक न रहने के बारे में पूछे गए एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि आजकल मल्टीप्लैक्स काजमाना है। पुराने समय में जहां थियेटरों में 400 से 600 प्रिंटों के साथ पूरे देश में कोई फिल्म रिलीज हुआ करती थी, वहीं आज देशभर में 7 हजार थियेटरों में एक साथ एक फिल्म को रिलीज किया जाता है। एक ही सिनेमा घर में एक फिल्म के 30 से 40 शो प्रतिदिन चलाए जाते हैं, यही वजह है कि एक फिल्म तीन दिन में 100 करोड़ का बिजनेस कर लेती है। उन्होंने कहा कि फिल्में आज भी अच्छी ही बन रही हैं। जो अच्छी फिल्म होती है वह हमेशा अच्छी फिल्म के तौर पर हमेशा याद रखी जाती है, चाहे पुरानी फिल्म शोले हो, या कुछ वर्षों पूर्व रिलीज हुई हम आपके हैं कौन, दिलवाले दुल्हनियां ले जाएंगे, कुछ-कुछ होता है आदि।
उन्होंने कहा कि भारत में फिल्म मनोरंजन का माध्यम है इसलिए हर सप्ताह एक से अधिक फिल्में रिलीज होती हैं। पब्लिक सिर्फ एक ही बात जानती है कि फिल्म से या तो पैसा वसूल हुआ है या बर्बाद।
(चन्द्रकांत शर्मा)
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